Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे भगवान शिव के भक्त बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाते हैं। यह पर्व हर वर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन भक्त शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, व्रत रखते हैं और पूरी रात जागकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं।
महाशिवरात्रि का पौराणिक महत्व |Mahashivratri 2025|
महाशिवरात्रि से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जो इस पर्व के महत्व को दर्शाती हैं।
1. शिव-पार्वती विवाह की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इस शुभ अवसर को मनाने के लिए महाशिवरात्रि का पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है।
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2. समुद्र मंथन और नीलकंठ की कथा |mahashivratri puja vidhi|
एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो समुद्र से अनेक बहुमूल्य वस्तुएं निकलीं। लेकिन जब समुद्र से हलाहल विष निकला, तो पूरे ब्रह्मांड के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया। इस भयंकर विष से सभी देवता और ऋषि-मुनि घबरा गए। तब भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और उसे निगलने के बजाय गले में रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। इस घटना को याद करते हुए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
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3. लिंगोद्भव कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। उस समय भगवान शिव ने एक विशाल अग्नि स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) का रूप धारण किया, जिसका आदि और अंत ढूंढना असंभव था। इससे यह प्रमाणित हुआ कि भगवान शिव ही सर्वोच्च सत्ता हैं। यही कारण है कि इस दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है।
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महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
महाशिवरात्रि का महत्व केवल पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्व आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है। इस दिन भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने से मन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
Mahashivratri 2025 का व्रत और पूजा विधि
महाशिवरात्रि पर भक्त व्रत रखते हैं और भगवान शिव का रुद्राभिषेक करते हैं। इस दिन शिवलिंग का जल, दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। साथ ही, बेलपत्र, धतूरा और आक के फूल अर्पित किए जाते हैं। रात्रि में जागरण करके भजन-कीर्तन करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
महाशिवरात्रि 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त:
- चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 26 फरवरी 2025 को सुबह 11:08 बजे
- चतुर्दशी तिथि समाप्त: 27 फरवरी 2025 को सुबह 08:54 बजे
महाशिवरात्रि की पूजा रात्रि के चार प्रहरों में की जाती है, जो इस प्रकार हैं:
- प्रथम प्रहर: शाम 06:29 से रात 09:34 तक
- द्वितीय प्रहर: रात 09:34 से 12:39 तक
- तृतीय प्रहर: रात 12:39 से सुबह 03:45 तक
- चतुर्थ प्रहर: सुबह 03:45 से 06:50 तक
Mahashivratri 2025 का दुर्लभ संयोग
इस वर्ष महाशिवरात्रि के दिन श्रवण नक्षत्र और परिध योग का विशेष संयोग बन रहा है। श्रवण नक्षत्र शाम 5:08 बजे तक रहेगा, जबकि परिध योग पूरे दिन रहेगा। इन शुभ योगों में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
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Mahashivratri 2025 में राशियों पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, महाशिवरात्रि के इन दुर्लभ संयोगों का विभिन्न राशियों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। विशेषकर, मेष, वृषभ, सिंह, वृश्चिक और मकर राशि के जातकों के लिए यह समय अत्यंत शुभ माना जा रहा है।
- मेष (21 मार्च – 19 अप्रैल): इस अवधि में आपके करियर में उन्नति के योग हैं। नए अवसर प्राप्त होंगे और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
- वृषभ (20 अप्रैल – 20 मई): व्यापार में लाभ के संकेत हैं। निवेश के लिए समय अनुकूल है, और परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।
- सिंह (23 जुलाई – 22 अगस्त): सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। नए संपर्क और संबंध बनेंगे, जो भविष्य में लाभदायक सिद्ध होंगे।
- वृश्चिक (23 अक्टूबर – 21 नवंबर): स्वास्थ्य में सुधार होगा। पुराने विवाद सुलझेंगे, और मानसिक शांति प्राप्त होगी।
- मकर (22 दिसंबर – 19 जनवरी): आर्थिक लाभ के प्रबल योग हैं। नौकरी में प्रमोशन या वेतन वृद्धि संभव है।
Mahashivratri 2025 की पूजा विधि
- प्रातः स्नान: सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदी या जल में स्नान करें।
- शिवलिंग अभिषेक: दूध, दही, शहद, घी, और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें।
- बिल्वपत्र अर्पण: शिवलिंग पर बिल्वपत्र, धतूरा, और आक के फूल चढ़ाएं।
- मंत्र जाप: ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
- रात्रि जागरण: पूरी रात जागकर भगवान शिव की कथा, भजन, और कीर्तन करें।
- व्रत पारण: अगले दिन प्रातः स्नान के बाद व्रत का पारण करें।
महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर भगवान शिव की आराधना करने से समस्त कष्टों का निवारण होता है और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आगमन होता है। विशेषकर, इस वर्ष के दुर्लभ संयोगों के कारण, यह पर्व और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
अतः, श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे इस अवसर का पूर्ण लाभ उठाएं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करें।