K.M. Cariappa Jayanti: भारत के सैन्य इतिहास में एक ऐसा नाम, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता, वह है फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा। हर साल 28 जनवरी को उनकी जयंती मनाई जाती है, जो भारतीय सेना के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ थे। उनका जीवन और योगदान भारतीय सैन्य परंपरा और राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा |K.M. Cariappa Jayanti in Hindi|
के. एम. करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के कोडगु जिले में हुआ था। उनका परिवार बेहद साधारण था, लेकिन वे बचपन से ही देशभक्ति और अनुशासन के प्रतीक थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोडगु में हुई, और बाद में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक किया। बचपन से ही वे सैन्य जीवन की ओर आकर्षित थे, और यह रुचि उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में ले आई।
सैन्य करियर की शुरुआत
1919 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, के. एम. करिअप्पा ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत “2/88 कैवलरी” रेजिमेंट से की। अपने नेतृत्व, अनुशासन और रणनीतिक कौशल के चलते वे जल्दी ही अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बर्मा (अब म्यांमार), ईरान और इराक में अपनी सेवाएं दीं, जहां उनकी नेतृत्व क्षमता और साहस की भूरी-भूरी प्रशंसा हुई।
भारत की स्वतंत्रता के बाद की भूमिका |K.M. Cariappa Jayanti in Hindi|
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सेना के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हुई। इस समय, के. एम. करिअप्पा को भारतीय सेना के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ के रूप में चुना गया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि इससे पहले यह पद केवल ब्रिटिश अधिकारियों के लिए आरक्षित था। 15 जनवरी 1949 को उन्होंने यह पदभार ग्रहण किया। इस दिन को भारतीय सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।



ऑपरेशन और सैन्य नेतृत्व
के. एम. करिअप्पा ने 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युद्ध के दौरान उन्होंने भारतीय सेना का कुशल नेतृत्व किया और जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से को भारत में बनाए रखने में सफलता प्राप्त की। उनके नेतृत्व में सेना ने न केवल अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया, बल्कि भारतीय क्षेत्र की रक्षा करने का अपना दायित्व भी निभाया।
उनकी सोच और दृष्टिकोण
के. एम. करिअप्पा ने हमेशा सेना को राजनीति से दूर रखने पर जोर दिया। उनका मानना था कि सेना का मुख्य कार्य देश की रक्षा करना है, न कि राजनीतिक मामलों में उलझना। उन्होंने अनुशासन, ईमानदारी और देशभक्ति को अपने जीवन और करियर का आधार बनाया। उनके इन्हीं गुणों के कारण वे आज भी युवाओं और सैनिकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन |K.M. Cariappa Jayanti in Hindi|
1953 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी के. एम. करिअप्पा ने देश सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखी। उन्होंने विभिन्न सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर सक्रियता दिखाई। वे हमेशा युवाओं को राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करते रहे।

सम्मान और मान्यता
फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा को उनकी सेवाओं के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले। उन्हें 1986 में फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सेना में सर्वोच्च रैंक है। उनका नाम भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।
के. एम. करिअप्पा जयंती का महत्व| K.M. Cariappa Jayanti in Hindi|
के. एम. करिअप्पा जयंती केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह उनकी देशभक्ति, नेतृत्व और अनुकरणीय जीवन के प्रति हमारी श्रद्धा व्यक्त करने का एक माध्यम है। इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें सेना के जवान, स्कूल और कॉलेज के छात्र, और आम जनता हिस्सा लेते हैं। उनके आदर्श और शिक्षाएं आज भी हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाएं।
फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा का जीवन भारत के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने अपने अद्वितीय नेतृत्व और सेवा भावना से भारतीय सेना को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी जयंती हमें यह याद दिलाती है कि देशभक्ति केवल एक भावना नहीं, बल्कि कर्तव्य है। उनके आदर्श और शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा नेतृत्व और सेवा हमेशा निस्वार्थ और ईमानदारी से की जाती है।