Delhi Assembly Election 2025 में कई क्षेत्रीय पार्टियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों के अनुसार, इन पार्टियों को कोई खास सफलता नहीं मिलती दिख रही है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा), अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसी पार्टियों ने चुनाव में हिस्सा लिया, लेकिन एग्जिट पोल के अनुसार इनमें से किसी भी पार्टी को कोई सीट नहीं मिलती दिख रही है। इसके अलावा, वामपंथी दलों को भी इस बार कोई सीट नहीं मिलने के संकेत हैं।
एग्जिट पोल में क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति
एग्जिट पोल के नतीजों के अनुसार, क्षेत्रीय पार्टियों और वामपंथी दलों को इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई खास सफलता नहीं मिलती दिख रही है। चाणक्य स्ट्रैटेजीज, मैट्रिज, पीपुल्स पल्स, पी मार्क, पीपुल्स इनसाइट, वी प्रीसाइड और माइंड ब्रिंक जैसे एग्जिट पोल्स में इन पार्टियों को शून्य सीटें मिलने का अनुमान है। केवल पोल डायरी और टाइम्स नाउ जेवीसी ने ‘अन्य’ के खाते में एक सीट जाते हुए दिखाई है, लेकिन यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह सीट किस पार्टी को मिल सकती है।



असदुद्दीन ओवैसी के लिए बड़ा झटका
एग्जिट पोल के नतीजे असदुद्दीन ओवैसी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकते हैं। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इस बार दिल्ली चुनाव में दो प्रत्याशी उतारे थे। ओखला से शिफा रहमान खान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन को टिकट दिया गया था। हालांकि, ओवैसी ने दिल्ली दंगों के दो आरोपियों को टिकट देकर पहले ही आलोचनाओं को आमंत्रित कर लिया था। एग्जिट पोल के अनुसार, एआईएमआईएम को कोई सीट नहीं मिलती दिख रही है, जो ओवैसी के लिए एक बड़ी हार होगी।
कौन कितनी सीटों पर लड़ा चुनाव?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने 70-70 सीटों पर चुनाव लड़ा। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 68 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और दो सीटें जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के लिए छोड़ दी। इनमें देवली और बुराड़ी सीटें शामिल हैं। अजित पवार की एनसीपी ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि बसपा ने 69 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने भी कुछ सीटों पर चुनाव लड़ा।
क्षेत्रीय पार्टियों की विफलता के कारण
क्षेत्रीय पार्टियों की विफलता के पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला, दिल्ली में मुख्य रूप से आप, बीजेपी और कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। क्षेत्रीय पार्टियों के पास दिल्ली में मजबूत जनाधार और संगठनात्मक ढांचे का अभाव है। दूसरा, इन पार्टियों ने जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ा, वे दिल्ली के मतदाताओं को प्रभावित करने में सफल नहीं हो पाए। तीसरा, असदुद्दीन ओवैसी और मायावती जैसे नेताओं ने जिस तरह से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाया, उससे उनकी पार्टियों को दिल्ली में सीमित समर्थन ही मिल पाया।
वामपंथी दलों की स्थिति
वामपंथी दलों ने भी इस बार दिल्ली चुनाव में हिस्सा लिया, लेकिन एग्जिट पोल के अनुसार उन्हें कोई सीट नहीं मिलती दिख रही है। वामपंथी दलों ने कुछ सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी उपस्थिति नगण्य रही। दिल्ली में वामपंथी दलों का प्रभाव पहले ही कम हो चुका है, और इस चुनाव में उनकी स्थिति और कमजोर होती दिख रही है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में क्षेत्रीय पार्टियों और वामपंथी दलों को कोई खास सफलता नहीं मिलती दिख रही है। एग्जिट पोल के अनुसार, इन पार्टियों को शून्य सीटें मिलने का अनुमान है। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के लिए यह एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि उन्होंने दिल्ली दंगों के आरोपियों को टिकट देकर पहले ही आलोचनाओं को आमंत्रित कर लिया था। इस चुनाव में आप, बीजेपी और कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है, और क्षेत्रीय पार्टियों को अपनी राजनीतिक रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता होगी।
मतगणना 8 फरवरी को होगी, और तब ही स्पष्ट होगा कि एग्जिट पोल के अनुमान कितने सही साबित होते हैं। हालांकि, अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित होते हैं, तो यह दिल्ली की राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक बड़ा सबक होगा।